जीते किसान – रुका चम्बल का विनाश
विशेष संवाददाता: चम्बल के किसान जीत गए हैं। अटेर से लेकर श्योपुर तक के किसानो के जोरदार आक्रोश और आंदोलन, उसे मिले समर्थन तथा अब ज्यादा बड़े आंदोलन की तैयारी से सहमी सरकार ने चंबल के बीहड़ में 404 किलोमीटर लंबा अटल एक्सप्रेस हाईवे बनाने की योजना फिलहाल रोक दी है। इस रोके जाने के पीछे उसने पर्यावरण मंत्रालय की आपत्ति को भैंस की पूँछ बनाया है मगर असली कारण पूरे चंबल के किसानो की जबरदस्त नाराजगी है। इसकी झलक हाल में हुए नगर और गाँवों के स्थानीय निकायों के चुनावों में दिखी जब कृषि मंत्री और इस चंबल का विनाश करने वाली परियोजना के सूत्रधार नरेंद्र सिंह तोमर के दोनों जिलों मुरैना और ग्वालियर में भाजपा बुरी तरह हार गयी।
इस योजना के तहत भिंड जिले के पास इटावा उत्तर प्रदेश से कोटा राजस्थान तक 404 किलोमीटर लंबी सड़क “अटल प्रोग्रेस वे” चंबल के बीहड़ों से होकर बनाया जाना प्रस्तावित किया गया था । अभी हाल ही में जमीन अधिग्रहण के नाम पर 10 हजार किसान परिवारों जिनके पास भूमि स्वामी स्वत्व है, को भिंड मुरैना श्योपुर कलां जिलों से विस्थापित किया जा रहा था। जिन्हें नाम के वास्ते जमीन या कुछ मुआवजा दिया जाना प्रस्तावित किया। इनके अलावा पीढ़ियों से बीहड़ की जमीन को समतल बनाकर खेती कर रहे लगभग 30 हजार किसान परिवारों को भी उजाड़ने की योजना, प्रदेश सरकार द्वारा बनाई गई। इन किसान परिवारों को किसी तरह की कोई जमीन या मुआवजा भी नहीं दिया जा रहा था।
कुल मिलाकर थोड़ा बहुत कम नगण्य मुआवजा देकर किसानों को विस्थापित कर हाईवे का निर्माण कराने के उपरांत, चंबल के बीहड़ की बेशकीमती लाखों एकड़ जमीन को कॉरपोरेट्स को सौंपने की योजना प्रदेश सरकार द्वारा बनाई गई। यह जमीन कारपोरेट्स को सड़क के दोनों ओर एक एक किलोमीटर के कॉरिडोर में दी जानी थी। जिसमें न तो किसानों का हित देखा गया और न हीं पर्यावरण व पारिस्थितिकी तंत्र के नुक़सान का मूल्यांकन किया गया। जल्दबाजी में योजना स्वीकृत कर जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया की शुरुआत की गई। स्थानीय किसानों ने मध्य प्रदेश किसान सभा (अखिल भारतीय किसान सभा) के नेतृत्व में मार्च में भिंड, मुरैना और श्योपुर कलां में व्यापक आंदोलन किए। उसके बाद भी लगातार कार्यवाहियां जारी रही।
यह किसानों की बड़ी जीत है। मध्यप्रदेश किसान सभा ने इस कथित राष्ट्रीय राजमार्ग की घोषणा होते ही इसके खिलाफ खुद अपनी पूरी ताकत झोंक कर और बाकी सब को जोड़कर लड़ाई का एलान कर दिया था। भिंड के अटेर से मुरैना के श्योपुर तक यात्राएं निकाली थीं। गाँव गाँव जाकर सभाएं की थी , जिनमे इस एक्सप्रेस वे की आड़ में कारपोरेट के हाथों चम्बल की अत्यंत उपजाऊ जमीन सौंपने और हजारों परिवारों को बेघर करने तथा सड़क के दोनों तरफ एक एक किलोमीटर का कॉरिडोर बनाने की साजिशों की असलियत जनता के बीच रखी थी। किसान सभा के इस अभियान को सभी किसानो का समर्थन मिला था और एक चिंगारी देखते देखते एक ज्वाला में तब्दील होती जा रही थी।
किसान सभा ने इस अभियान में अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया था। इस आंदोलन के समन्वयक और मध्यप्रदेश किसान सभा के उपाध्यक्ष अशोक तिवारी और मुरैना जिले के प्रमुख वामपंथी नेता, सीपीएम जिला सचिव इस अभियान के दौरान एक गंभीर सड़क दुर्घटना के शिकार और गंभीर रूप से घायल हुए थे ।
अखिल भारतीय किसान सभा ने चम्बल के किसानो तथा मप्र किसान सभा के साथियों को इस कामयाबी पर बधाई दी है। एआईकेएस अध्यक्ष डॉ अशोक ढवले तथा संयुक्त सचिव बादल सरोज ने उम्मीद जताई है कि अब किसानो को इस तरह से एकजुट किया जाएगा कि भविष्य में आने वाली साजिशों के खिलाफ उनके पास मजबूत संगठन हो।